Life A Fact of Moments
The pleasant journey of our life starts from childhood. Everyone loves us a lot in this whether known or unknown. Almost the first five to six years go by in this. Then the journey of studies begins. Everyone has a lot of expectation from us in this. In this way twenty years of life pass like this.
In
this way, along with studies, the thought of what to do in the coming time also
starts emerging and the race for the job starts. Whether got the job or not ,
the process of marriage starts and within a year or two, marriage also takes
place.
Life
changes after marriage and a new responsibility begins. The journey of love
begins as soon as a child is born. Became so busy in life between job and
household responsibilities that it is not known when I am at home and when in
office.
After
the birth of a child, there is such a lack of love in the relationship between
husband and wife that talks of love are rarely possible. Often someone talks
only for their needs. While living like this, the time for retirement comes. No
one pays attention to me because of busy at home.
हमारे
जीवन की सुखद यात्रा बचपन से शुरु होती है। इसमें जाने-अनजाने सभी हमें बहुत प्यार
करते हैं। इसी में लगभग शुरुआती पांच-छह साल निकल जाते हैं। फिर शुरु होता है पढ़ाई
का सफर। इसमें सभी को हमसे काफी उम्मीदें हैं। इस प्रकार जीवन के बीस वर्ष ऐसे ही बीत
जाते हैं।
ऐसे
में पढ़ाई के साथ-साथ आने वाले समय में क्या करना है इसका ख्याल भी मन में आने लगता
है और नौकरी की होड़ मच जाती है। नौकरी मिले या न मिले, शादी का सिलसिला शुरु हो जाता
है और एक-दो साल में शादी भी हो जाती है।
शादी
के बाद जिंदगी बदल जाती है और एक नई जिम्मेदारी शुरु हो जाती है। प्यार का सफर शुरु होता ही है कि बच्चा पैदा हो जाता है। नौकरी
और घर की जिम्मेदारियों के बीच जिंदगी में इतना व्यस्त हो गया कि पता ही नहीं चलता
कि कब घर में हूं और कब ऑफिस में।
बच्चे
के जन्म के बाद पति-पत्नी के रिश्ते में प्यार की इतनी कमी आ जाती है कि प्यार की बात
कम ही हो पाती है। अक्सर कोई अपनी जरुरत के लिए ही बात करता है। ऐसे रहते-रहते संन्यास
का समय आ जाता है। घर में व्यस्त होने के कारण कोई मुझ पर ध्यान नहीं देता।
एक
दिन मैं सुबह की चाय का इंतजार कर रहा था और मेरी नजर किचन की ओर थी। मैं जब भी बोलता
तो एक ही जवाब मिलता, अभी ला रही हूं, बच्चे को नाश्ता करा दूं। जब दूसरी बार आवाज लगाई तो जवाब मिला मैं ऐसे ही नहीं बैठी हूं, रुको, थोड़ा
इन्तजार करो। किचन की ओर इस तरह देखते देखते
मैंने कब आखिरी सांस ली पता ही नहीं चला।
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