श्री रुद्रसूक्तम स्तोत्र

॥ रुद्रसुक्तम ॥


ॐ नमस्ते रुद्र मन्यवs उतो तs इखवे नमः। बाहुभिया मुत ते नमः॥१॥ 

या ते रुद्र शिवा तनू रघोराऽ पाप का शिनी। तया नस तन्वा शन्त मया गिरिशन्ता भिचा कशीहि ॥२॥

 यामिखुंग गिरिशन्त हस्ते बिभर ख्यस्त्वे । शिवांगि रित्र तांग कुरु मा हिगु सीहि पुरुखन जगत् ॥३॥

 शिवेना वचसा त्वा गिरिशाच्छा वदामसि। यथा नः सर्वमिज्ज जगद यक्ष्मगु सुमनाs असत्॥४॥ 

अध्य वो चदधि वक्ता प्रथमो दैव्यो भिखक् । 

अर्हीमस्च सर्वान जम्भ्यंत सर्वांश्च यातु -धान्योs धरा चीहि परासुव॥५॥ 

असौ यस्ताम्रो अरुणs उत बभ्रुः सुमङ्गलः। 

ये चै नगु रुद्राs अभितो दिक्षु श्रिताः सहस्रसो ऽ वैखा गुहेडाs ईमहे॥६॥ 

असौ योऽ वसरपति नील ग्रीवो विलो हितः। 

उतै नंग गोपा अदृश्रन् नदृश्रन्नु दहारय स दृष्टो मृडयाति नः॥७॥ 

नमोऽस्तु नील ग्रीवायो सहस् राक्षाय मीढुखे। अथो ये असया सत्वानो ऽ हंतेभ्यो ऽकरन नमः॥८॥

 प्रमुंच धन्व नस्सत्व मुभयोर रातन्योर ज्याम। याश्च ते हस्त s इखवः परा ता भगवो वप॥९॥ 

विज्यन धनु: कपर्द दिनो विशल्यो बाणवान s 

उत अनेशन्न नसया या s इखव s आभूरस्य निखं गधि : ॥ १०॥ 

 या ते हेतिर मीढुष्ट: माहस्ते बभूव ते धनुः। तया स्मान विश्वतह त्वमा यक्ष्मया परि भुज॥११॥ 

परि ते धन्वनो हेति रस्मान वृणक्तु विश्वतः। अथो यs इखु धिस्तवारेs अस्मन् नि धेहि तम्॥१२॥

 अवतत्य धनुष्ट्वगु सहस्राक्षा शते खुधे। निशी र्य शल्यानाम मुखा शिवो नः सुमना भव ॥१३॥ 

नमस्त आयुधाया नातताय धृष्णवे। उभाभ्या मु त ते नमो बाहुभियान तव धन्वने॥१४॥ 

मा नो महान्त मु त मा नोs अर्भकं मा नs उक्षन्त मुत मा न उक्षितम्। 

मा नो वधीही पितरं मोत मातरं मा नः प्रियास तन्वो रुद्र रीरिखाहा ॥१५॥ 

मा नस्तो के तनये मा नs आयुखि मा नो गोखु मा नो s अश्वे खुरी रिखाहा । 

मा नो वीरान् रुद्र भामिनो वधी रे ह विखमन्तः सद मित् त्वा हवामहे॥१६॥ 


॥इति रुद्रसुक्तम ॥



Comments

Story on Life of a Diligent Boy

Citrullus Colocynthis (Garmunda)

Tomorrow Never Comes

श्रीसुक्तम्

How Many Chapter can be Read Daily in Navratri?

Success Is Not Just a Coincidence

When My Father Had Become Idle

Let Joy Be Your Constant Companion

Why do relationships become painful?

Views and Viewpoints of Thinking