Importance of Guru
Everyone needs a guide for their life, who should inspire us to follow the good path with a good rite. Our first teachers are parents who bring us into this world. Whose education works everywhere in our life and guides our life.
The Guru will not only help you in your spiritual journey, but will also guide you in your household life, he will give you intuition powers to decide what is good for your life and what is bad. He will give you powers to decide which path will benefit your soul and will guide you which path to avoid.
The word "Guru" is a Sanskrit word. "A person imparting spiritual and worldly knowledge is called a Guru." After parents, it is the Guru who helps us to move towards positivity without any discrimination and selflessness and keeps us from negativity. Our poets and litterateurs have told about the glory of Guru in our lives in different languages.
Guru's place in Sanskrit language is also mentioned above God, because interviewing to God is possible only through Guru. It is said in Sanskrit--
That is to say, "Guru is Lord Brahma, Guru is Lord Vishnu and Guru is Lord Mahesh (Shankar), Guru is a true Parabrahma, that's why I bow to my Guru."
That is, "the fruit of humility is seva, the fruit of guru seva is knowledge, the fruit of knowledge is virakti (stability), and the fruit of stability is ashrava nirodha (liberation of bondage and salvation)."
That is, "Just like a cow without milk, a vine without a flower, a wife without a character, a water without a lotus, a knowledge without peace, and a city without people do not adorn, likewise a Guru does not grace a disciple." Read More...
हर किसी को अपने जीवन के लिए एक मार्गदर्शक की जरूरत पड़ती है, जो हमें एक अच्छे संस्कार के साथ ही अच्छे मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करें। हमारे पहले गुरू माता पिता होते है जो हमें इस दुनिया में लाते है। जिनकी शिक्षा हमारे जीवन में हर जगह पर काम आती है और हमारे जीवन का मार्गदर्शन करती हैं।
गुरु न केवल आपकी आध्यात्मिक यात्रा में आपकी मदद करेगा, बल्कि आपके गृहस्थ जीवन में भी आपका मार्गदर्शन करेगा, वह आपको यह निर्णय लेने के लिए अंतर्ज्ञान शक्तियाँ देगा कि आपके जीवन के लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा है। वह आपको यह तय करने की शक्तियाँ देगा कि कौन सा मार्ग आपकी आत्मा को लाभ पहुँचाएगा और आपको किस मार्ग से बचने के लिए मार्गदर्शन करेगा।
"गुरु" शब्द एक संस्कृत शब्द है। "आध्यात्मिक और सांसारिक ज्ञान प्रदान करने वाले व्यक्ति को गुरु कहा जाता है।" माता-पिता के बाद, यह गुरु ही है जो हमें बिना किसी भेदभाव और निस्वार्थ भाव से सकारात्मकता की ओर ले जाने में हमारी मदद करता है और हमें नकारात्मकता से दूर रखता है। हमारे कवियों और साहित्यकारों ने विभिन्न भाषाओं में हमारे जीवन में गुरु की महिमा के बारे में विस्तार से बताया है।
संस्कृत भाषा में गुरु का स्थान भगवान से भी ऊपर बताया गया हैं, क्योंकि भगवान का साक्षात्कार गुरु के माध्यम से ही संभव होता हैं। संस्कृत में कहा भी गया हैं--
अर्थात “गुरु ही भगवान ब्रह्म हैं, गुरु ही भगवान विष्णु हैं और गुरु ही भगवान महेश (शंकर) हैं, गुरु तो साक्षात् परब्रह्मा हैं, इसीलिए में अपने गुरु को प्रणाम करता हूँ।
अर्थात "विनय का फल सेवा है, गुरु सेवा का फल ज्ञान है, ज्ञान का फल विरक्ति (स्थायित्व) है, और विरक्ति का फल आश्रव निरोध (बंधन मुक्ति तथा मोक्ष) है।"
अर्थात "जैसे दूध के बिना गाय, फूल के बिना लता, चरित्र के बिना पत्नी, कमल के बिना जल, शांति के बिना विद्या, और लोगों के बिना नगर शोभा नहीं देते, वैसे हीं गुरु के बिना शिष्य शोभा नहीं देता।"
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