गर्मी की रात
ना जाने आज नींद का ना कोई एहसास था आंखों के सामने बादलों से भरा आकाश था आंख मिचौली खेलता बादलों से चांद है हर तरफ छाया यहां नींद का उन्माद है मैं तरस्ता नींद को नींद कोसों दूर है हर तरफ झिंगूर का शोर है। एक सुर एक ताल में गीत ऐसे गा रहे जैसे मिलकर सब के सब मुझ को सुला रहे दूर उपवन में कहीं एक मोर भी था जाग रहा दे उनको आवाज लगता उनको शांत करा रहा चित परिचित सी बयार फिर बहने लगी मेरे उद्वेलित मन को शांत कुछ करने लगी नायाद किसने तोड़ा था मेरा वायदा ना याद किसने कब उठाया था मेरा फायदा बस एक खुशी होती है काम किसी के आये हम वरना पछतावा रहता इस जग में क्यों आए हम ना रोष है, ना द्वेष है पर घाव है और दर्द भी है गर्म जलता है क्यों तन यह रात शीतल सर्द है किसने किया और क्यों किया अब नहीं परवाह मुझे फिर भी अक्सर रूठ जाती है उठ जाती आज भी कराह मुझे अशोक कुमार शर्मा "अक्स"the first